श्रीलंका के इस खूनी मंजर में ईस्टर के अवसर पर एक धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया। चर्च और ऐसे होटलों पर हमले किए गए, जहां धर्म विशेष के लोगों का जमघट था। वे धार्मिक कार्य के लिए जुटे थे, खुशी मना रहे थे, आपस में मिल-जुल रहे थे, लेकिन आतंकियों को यह पसंद नहीं आया।
श्रीलंका अपनी शांति और मनोरतमा के लिये नई इबारत लिख ही रहा था कि वहां हए सिलसिलेवार शक्तिशाली बम विस्फोटों एवं धमाकों के खौफनाक एवं त्रासद दृश्यों ने सम्पूर्ण मानवता को लहुलूहान कर दिया, आहत कर दिया और दहला दिया। कैसी उन्मादी आंधी पसरी कि 200 से अधिक लोगों का जीवन ही समाप्त कर दिया। हजारों गंभीर रूप से घायल हो गए तथा करोड़ों रुपये की सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस प्रकार यह विस्फोटों की श्रृंखला, अमानवीय कृत्य अनेक सवाल पैदा कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि कुछ उन्मादी लोगों के उन्माद में न जिन्दगी सुरक्षित है और न ही जीवन-मूल्यों की विरासतआखिर कब रूकेगा हिंसा, आतंक एवं त्रासदी का यह खूनी खेल। इस तरह के हिंसा, भय, आतंक, अन्याय एवं अमानवीयता के घृणित कर्मों ने यह भी साबित कर दिया कि आदमी के मन में पाप का भय रहा ही नहीं।